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प्रदेश में खेल अधोसंरचना का निरंतर विकास हो रहा है : मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव

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ShivNov 17, 20243 min read

भोपाल।   मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि प्रदेश…

खेल प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने छत्तीसगढ़ सरकार प्रतिबद्ध – मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय

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ShivNov 17, 20243 min read

रायपुर।    मुख्यमंत्री विष्णु देव साय आज राजधानी रायपुर के…

फ्लैट खरीदी-बिक्री में फर्जीवाड़ा, पटवारी के असिस्टेंट समेत दो आरोपी गिरफ्तार

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ShivNov 17, 20241 min read

बिलासपुर।  फ्लैट खरीदी-बिक्री के मामले में फर्जीवाड़ा करने का मामला…

November 17, 2024

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आचार्य श्री की प्रेरणा,आशीर्वाद से बड़े मंदिर में लघु तीर्थ निर्माण शीघ्र प्रारंभ करना रायपुर सकल दिगंबर जैन समाज की पहली प्राथमिकता हो:–संजय नायक (पूर्व अध्यक्ष)

रायपुर।    आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनि राज का नाम किसी के लिए अपरिचित नहीं है। वे स्वतंत्र भारत के एक ऐसे महान योगी, साहित्यकार, युगपुरुष, संस्कृति संरक्षक, मातृभाषा हिमायती के रूप में जाने जाते हैं। आज 17 अक्टूबर गुरुवार शरद पूर्णिमा को उनका 79वां जन्म जयंती महोत्सव सम्पूर्ण विश्व में भक्तिमय वातावरण में उत्साह के साथ मनाया जाएगा। पूर्व उपाध्यक्ष श्रेयश जैन बालू ने बताया कि इसी क्रम में आज श्री दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर पंचायत ट्रस्ट मालवीय रोड (लघु तीर्थ) में सुबह 8 बजे जिनालय की पार्श्वनाथ बेदी के समक्ष धर्म प्रेमी बंधुओ द्वारा पाण्डुक क्षीला में श्री जी को विराजमान कर प्रासुक जल से श्री जी का अभिषेक,शांति धारा की गई। साथ ही आज देव शास्त्र गुरु पूजन एवं आचार्य श्री विद्यासागर पूजन अष्ट द्रव्यों से निर्मित अर्घ्य समर्पित कर किया गया। सभी ने श्री जी मंगलमय आरती भी की। उपस्थित धर्म प्रेमी बंधुओ द्वारा आचार्य विद्यासागर महाराज के जयकारे लगाए जिससे सारा जिनालय आचार्य श्री के जयकारों से गुंजायमान हो गया।
पूर्व अध्यक्ष श्री संजय जैन नायक ने बताया कि राष्ट्र का संपूर्ण जैन समाज आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के समाधिस्थ होने के बाद आज पहली बार उनके जन्मदिवस पर उन्हें विनत भाव से स्मरण कर श्रद्धा सुमन एवं विननयांजलि अर्पित कर रहा है।आचार्य श्री विद्यासागर जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के ग्राम सदलगा में हुआ और उन्होंने 17 फरवरी 2024 को चंद्रगिरी डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) में समाधिस्थ होकर अपने जीवन का समापन किया। श्रमण संस्कृति के महामहिम संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने 5 दशक से अधिक समय तक देश के विभिन्न शहरों में पदत्राण विहीन चरणों से पद बिहार करते हुए अथवा चातुर्मास करते हुए अपने त्याग, तपस्या, ज्ञान, साधना, और करुणा की प्रभा से न केवल जैन क्षितिज को आलोकित किया, बल्कि श्रमण संस्कृति (जिन शासन) को भी गौरवान्वित किया। वे जैनों के ही नहीं, जन-जन के संत थे। राजधानी रायपुर की धरती पर निवासरत समाज बहुत सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें कई बार आचार्य श्री का चरण सानिध्य मिला और उनकी चरण वंदना एवं अभिषेक करने का अवसर भी प्राप्त हुआ।आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का चातुर्मास 2023 में जब छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ क्षेत्र में हुआ था। तब चतुर्मास समाप्ति के बाद आचार्य श्री तिल्दा में नव निर्मित जिनालय के पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न करवाकर सीधे तिल्दा से राजधानी रायपुर के मालवीय रोड स्थित श्री आदिनाथ दिगंबर जैन बड़े मंदिर में दिनांक 20 दिसंबर 2023 को अपना अल्प प्रवास किया था। इस अल्प प्रवास में उनकी प्रेरणा एवं आशीर्वाद से बड़े मंदिर के जिनालय का पुनः निर्माण कर नवीन जिनालय बना कर लघु तीर्थ बनाने का मंगल आशीर्वाद सभी को दिया था। और आचार्य श्री जिनके निर्देशानुसार जब तक नवीन जिनालय लघु तीर्थ का निर्माण नहीं हो जाता। जब तक सभी ने संकल्प लेकर अखंड ज्योति भी प्रज्वलित करे ऐसा कहा था। इस पर अमल करते हुए दिनांक 25 /1 / 2024 से यह अखंड ज्योत आज भी बड़े मंदिर के जिनालय में मूल नायक भगवान श्री आदिनाथ भगवान की बेदी के समक्ष प्रज्वलित है। आचार्य श्री के रायपुर से विहार के पश्चात डोंगरगढ़ में आचार्य श्री की समता भाव पूर्वक समाधि हो गई है। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि ऐसे महान संत हमे लघु तीर्थ निर्माण करने का आशीर्वाद दिया है जिसे पूरा करना हम सभी रायपुर समाज जन की प्रमुख जिम्मेदारी है। और हम सभी संकल्पित भी है। सभी सकल दिगंबर जैन समाजजन को आचार्य श्री के लघु तीर्थ निर्माण स्वप्न को मिलकर प्रारम्भ कर पूर्ण करना यह हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।

आचार्य श्री का जीवन वृत्त

आचार्य श्री विद्यासागर जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946 शरद पूर्णिमा को कर्नाटक प्रांत की पुण्य भूमि सदलगा में हुआ था। मात्र 22 वर्ष की उम्र में दिनांक 30 जून 1968 को आपने पंडित रत्न, साहित्य मनीषी, आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज से राजस्थान प्रांत के अजमेर नगर में दीक्षा ग्रहण करके दिगम्बर मुनि के रूप में साधना करने लगे। आपको 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद प्रदान करके अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। आप अपनी मातृभूमि कर्नाटक से आकर राजस्थान में वैराग्य ग्रहण करके मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना और अपनी साधना शक्ति के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व रूपी बगिया में आध्यात्मिक सौरभ बिखेरा। आपने अपने अंतिम समय में नवोदित तीर्थ चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) में 18 फरवरी 2024 (मध्य रात्रि) को समाधि मरण को धारण करते हुए अपने भौतिक शरीर को त्याग दिया।

अनासक्त योगी (वर्तमान के वर्द्धमान)

आपने अपनी तपस्या के द्वारा जिस तेज को प्राप्त किया हर कोई आपसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका जिसने भी आपके एक बार दर्शन किए वह पूरी तरह आपकी भक्ति में ही रम गया, फिर चाहे वह कितना ही बड़ा व्यक्ति क्यों ना हो। विदेशी लोग जब भी आपके संपर्क में आते उनके मुख से यह बात सुनने को मिलती थी कि हमने भगवान के बारे में सुना था आज साक्षात् भगवान के दर्शन किए हैं। यह सब उनकी तपस्या का ही सफल था। हम सबको भगवान वर्धमान महावीर को तो नहीं देखने का अवसर प्राप्त हुआ परंतु आचार्य विद्यासागर जी के रूप में वर्तमान के वर्धमान के दर्शन का सौभाग्य जरूर प्राप्त किया है।

सच्चा भारत रत्न

अपने भारतीय संस्कृति की पुनः स्थापना का जो बीड़ा उठाया उसके अंतर्गत आपने कई ऐसे महान प्रकल्पों की रूप रेखा समाज के सामने रखी और आपकी प्रेरणा से वे सब प्रकल्प आज संपूर्ण देश में अपना सौरभ बिखेर रहे हैं। यहां तक की भारत सरकार भी उन प्रकल्पों में अपनी सहभागिता प्रकट करके अपने आप को गौरवान्वित मानती है

दूरदृष्टा और महान संस्कृति निर्माता

सुरक्षित एवं सांस्कृतिक कन्या शिक्षा के लिए प्रतिभास्थली, स्वावलंबन के लिए हथकरघा, स्वदेशी चिकित्सा को बढ़ाओ देने के लिए पूर्णायु व भाग्योदय जैसे चिकित्सा संस्थान, राष्ट्रभाषा हिन्दी के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में पूर्ण विशुद्ध हिंदी पाठ्यक्रम की प्रेरणा, जीव रक्षा के लिए दयोदय महासंघ (गौशाला) जैसे कई प्रकल्पों की प्रेरणा देकर भौतिक संसाधनों और पश्चिमी प्रभाव से मुक्त करते हुए प्राचीन भारतीय संस्कृति की पुनः स्थापना के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन सभी प्रकल्पों के सुव्यवस्थित वृद्धिगत होने पर इसके सुपरिणाम हमें निकट भविष्य में देखने को मिलेंगे।

महान संघ नायक

आध्यात्मिक चेतना को विकसित और सुरक्षित समवर्ती करने के लिए आपने सैकड़ो जिन मंदिर का जीर्णोद्धार एवं नव तीर्थ की स्थापना का की प्रेरणा देकर अहिंसा धर्म को हजारों हजार साल के लिए सुरक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया अपने न सिर्फ अचेतन तीर्थ हो बल्कि सैकड़ों चेतन तीर्थ को भी बनाया जो वर्तमान में संपूर्ण भारतवर्ष ही नहीं विदेशों में भी अपने प्रतिभा का सौरभ बिखेर रहे हैं। वर्तमान में आपके द्वारा दीक्षित 130 दिगम्बर जैन मुनिगण, 172 आर्यिका माताजी, 20 ऐलकगण, 14 क्षुल्लकगण और हजारों ब्रह्मचारी भैय्या और ब्रह्मचारी बहिनें सर्वत्र अहिंसा धर्म का डंका बजा रहे हैं।

अनुठा परिवार

आपके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने एवं माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी। वही आपके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आपसे से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर और मुनि समयसागर के रूप में प्रसिद्ध हुए हाल ही में आपके बड़े भाई ने भी आपसे दीक्षा लेकर मुनि उत्कृष्ट सागर जी महाराज के रूप में साधनारत है। इस प्रकार घर के लोग संन्यास ले चुके हैं। इस परिवार का यह अनुपम और अनुठा कार्य सर्व जन के अनुकरणीय है।

अनोखा कीर्तिमान

आपकी अद्भुत अनुपम प्रतिभा के महत्व को समझते हुए भारत सरकार के भारतीय डाक विभाग द्वारा आपके 50वें दीक्षा वर्ष (संयम स्वर्ण महोत्सव) (वर्ष 2017-18) एवं 50 में आचार्य पद पदारोहण समारोह (संस्कृति शासनाचार्य स्वर्ण महोत्सव) (वर्ष 2021-22) देश के हर कोने कोने से सैकड़ो विशेष आवरण जारी किए। किसी संत पर इतनी अधिक संख्या में जारी विशेष आवरण का अनूठा कीर्तिमान बन गया।

भारत रत्न अलंकरण व डाक टिकट सिक्के जारी हो

भारत सरकार आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनि राज के देश की सांस्कृतिक मूल्यों को पुनर्जीवित करने के लिए आपके द्वारा किए गए अद्भुत अविस्मरणीय अद्वितीय कार्यो को देखते हुए आपके प्रथम समाधि दिवस 18 फरवरी 2025 को भारत रत्न अलंकरण की घोषणा करते हुए आप की स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिए सिक्के और आपके कार्य को रेखांकित करते हुए डाक टिकटों की श्रृंखला जारी करने का उपक्रम करें तो यह उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। वही पारस वीर सदी की एक उपलब्धि होगी। हालांकि दिगम्बर संत अलंकरण, मान प्रतिष्ठा, सम्मान आदि से बहुत दूर रहते हैं, वे इनको स्विकार भी नहीं करते हैं क्योंकि वे तो इसे भी परिग्रह की श्रेणी में रखते है। वहीं आचार्य श्री ने तो अपने अंतिम समय में अपना आचार्य पद भी त्याग कर समाधि का आश्रय लिया था, परंतु उनके भक्तों की यह भावना है कि सरकार इसे क्रियान्वित करके अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर सकती है।