पुण्य और पाप हमारे अच्छे,बुरे कर्मो के कारण बनते है :- श्री 108 पुनीत सागर जी महामुनिराज
रायपुर। आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनि राज़ के परम प्रभावक शिष्य आध्यात्म योगी, चर्या शिरोमणी, वितरागी श्रमण संस्कृति के आध्यात्मिक सद्गुरु श्री 108 आगम सागर जी महामुनि राज, श्री 108 पुनीत सागर जी महामुनिराज एवं ऐलक श्री 105 धैर्य सागर जी महामुनिराज का मंगल प्रवेश राजधानी के श्री आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर (लघु तीर्थ) मालवीय रोड में 2 दिसंबर को हुआ। महाराज जी के मंगल प्रवेश और पावन सानिध्य से संपूर्ण समाज में उल्लास छा गया। आज दिनांक 3 दिसंबर को प्रातः सुबह नित्य अभिषेक,शांति धारा पूजन के पश्चात सुबह 8.30 बजे आचार्य श्री का पूजन अष्ट द्रव्यों से किया गया।तत्पश्चात श्री 108 पुनीत सागर जी महामुनिराज जी ने अपने मुखाग्रबिंदु से प्रवचन में बताया कि पाप और पुण्य हमारे अच्छे और बुरे कर्मो कार्यों के कारण बनते है। जैसे हम अपने अपने दैनिक जीवन में अच्छे कार्य करते है देव, शास्त्र ,गुरु के बताए मार्ग पर चलते है। तो हमे इसके अच्छे परिणाम इस जीवन के आलावा अगले पर्याय में भी मिलते है। और अगर हम सदा बुरे,पाप के कार्यों में लगे रहते है तो इसके परिणाम हमेशा बुरे मिलेंगे और जब भी कोई जीवन हमे मिलेगा तो चाहे कितने अच्छे कार्य कर लो पहले पूर्व मै किए बुरे कार्यों का परिणाम भोगना पड़ेगा। अच्छे पुण्य कार्यों से आत्मा पवित्र होती है। और पाप कार्यों से दुर्गति होती है। इसलिए जो भी व्यक्ति देव शास्त्र गुरु पर विश्वास रख कर यह वहा नहीं भटकता उसे हमेशा सद्गति प्राप्त होती है। कभी नरक गती नहीं मिलती,अच्छा कुल प्राप्त होता है, नपुंसकता नहीं होती।उच्च कुल की प्राप्ती होती है।घर मै हमेशा हर्ष का वातावरण होता है।ठीक इसके विपरीत अगर बुरे कार्यों को करते है तो पिछले बुरे कार्यों को पहले भुगतना पड़ता है बीच कुल मै जन्म मिलता है दरिद्रता का जीवन जीना पड़ता है घर मै सब बीमार और जन्म से लेकर मृत्यु तक सिर्फ दवाईयो का सेवन करना पड़ता है।इसलिए समय का लाभ लेकर हमेशा लेकर अच्छे कार्य करना चाहिए।
श्री 108 आगम सागर महाराज ने अपने प्रवचन में बताया कि समाधिस्थ प. पु. संत शिरोमणि विश्व वंदनीय आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की समाधि को एक वर्ष पूर्ण हो रहे है। आचार्य श्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी, जो बाद में आर्यिका समयमति बनी। विद्यासागर जी को 30 जून 1968 को अजमेर में 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी और उनका मुनि बनने उपरांत आध्यात्मिक जीवन मध्य प्रदेश बुंदेलखंड में सब से अधिक व्यतीत हुए था। और ये हमारे लिए परम सौभाग्य की बात है कि उनकी समाधि छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चंद्र गिरी तीर्थ स्थल पर हुई। 1 वर्ष के समाधि महोत्सव के उपलक्ष्य में वहा श्री सिद्ध चक्र महामंडल विधान करने का आयोजन किया जा रहा है। जिसमे समाज के सभी सदस्य भाग ले सकते है। और भविष्य में समाधि स्थल का निर्माण भी किया जाना है। इस समाधि स्थल में आचार्य श्री के जीवन का बचपन से लेकर समाधि तक संपूर्ण परिचय हमे यहां देखने को मिलेगा। यह निर्माण अत्यंत भव्य और विश्व स्तरीय निर्माण होगा।