Special Story

आबकारी घोटाला मामला : सरकार ने दी 21 आबकारी अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति

आबकारी घोटाला मामला : सरकार ने दी 21 आबकारी अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति

ShivMay 18, 20251 min read

रायपुर।   छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित शराब घोटाले की जांच के बीच…

रिटायर्ड फार्मासिस्ट को मिली राहत, हाईकोर्ट ने निरस्त किया पौने आठ लाख की रिकवरी का आदेश

रिटायर्ड फार्मासिस्ट को मिली राहत, हाईकोर्ट ने निरस्त किया पौने आठ लाख की रिकवरी का आदेश

ShivMay 18, 20251 min read

बिलासपुर।    रिटायर्ड फार्मासिस्ट के वेतन से पौने आठ लाख…

May 18, 2025

Apni Sarkaar

जो कहेंगे सच कहेंगे

बस्तर में मिली हीरे की मौजूदगी, भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में हुई पुष्टी, ग्रामीण कर रहे खनन का विरोध

जगदलपुर।     बस्तर के आदिवासी एक बार फिर से अपने जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए लामबंद हो चुके हैं. हाल ही में अमागुड़ा पंचायत और छोटे अलनार में भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण ने चूना पत्थर और हीरे की खदानों की उपस्थिति को लेकर रिपोर्ट जारी की है. इस सर्वे में 141.438 हेक्टेयर जमीन शामिल है. वहीं इस रिपोर्ट के बाद बस्तर के 9 गांव के ग्रामीणों में अपनी जंगल-जमीन को लेकर चिंता व्याप्त हो गई है.

ग्रामीणों का कहना है कि सर्वेक्षण की जानकारी उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से मिली, जिससे यह पता चला कि भविष्य में यहां खनन किया जा सकता है. उनका कहना है कि इस खनन में उनकी पट्टे वाली जमीन भी शामिल है. इसे लेकर ग्रामीण कलेक्ट्रेट पहुंचे और कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा. ग्रामीणों की मांग है कि भविष्य में होने वाली खनन की योजना को तुरंत रोका जाए.

आंदोलन की चेतावनी:

ग्रामीणों ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर खनन की योजना पर रोक नहीं लगती, तो वे अपने गांवों को पूरी तरह से बंद कर देंगे और किसी को भी गांव में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देंगे. इसके अलावा, वे ग्राम सभा आयोजित कर सशक्त निर्णय लेने की योजना बना रहे हैं. यह पहला मौका नहीं है जब बस्तर के लोग खनन के खिलाफ खड़े हुए हैं. इससे पहले भी, 2016 में खनन के लिए हुए सर्वेक्षण का विरोध हुआ था, जिसके बाद खनन रोक दिया गया था.

महिलाओं का संघर्ष:

गांव की महिलाओं का कहना है कि वे इस गांव में चार पीढ़ियों से निवास कर रही हैं और वे अपने घरों को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगी. महिलाओं का कहना है कि उनकी जमीन और जंगल उनकी जीवनरेखा हैं, जिन्हें वे किसी भी कीमत पर नहीं खोना चाहतीं.

औद्योगीकरण का विरोध:

बस्तर में पहले भी औद्योगीकरण को लेकर विरोध होते रहे हैं. उदाहरण के लिए, लोहंडीगुड़ा में टाटा स्टील प्लांट के लिए भूमि अधिग्रहण किया गया था, लेकिन ग्रामीणों के विरोध के चलते वह परियोजना नहीं हो सकी. इसी प्रकार, नगरनार स्टील प्लांट भी ग्रामीणों की जमीन पर लगाया गया, लेकिन आज भी वहां के ग्रामीण रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

अब, बस्तर में डायमंड सर्वे के बाद ग्रामीणों में असंतोष और बढ़ गया है. उनका संघर्ष इस बात का प्रतीक है कि वे अपने जल, जंगल और जमीन को किसी भी सूरत में खोने नहीं देना चाहते.