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ShivApr 20, 20251 min read

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ShivApr 20, 20251 min read

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। स्कूल में मानवता को शर्मसार करने वाला एक सनसनीखेज…

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ShivApr 20, 20253 min read

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ShivApr 20, 20251 min read

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April 20, 2025

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धोखा देकर किया विवाह, पत्नी की याचिका पर हाईकोई ने तलाक पर सुनाया फैसला

बिलासपुर।    सरकारी नौकरी और उम्र कम होने का धोखा देकर विवाह करने के मामले में हाईकोर्ट ने पत्नी की अपील स्वीकार कर ली है. जांजगीर परिवार न्यायालय ने अपीलकर्ता पत्नी की तलाक की अर्जी खारिज कर दी थी, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस संजय जायसवाल की डबल बैंच में हुई.

जांजगीर निवासी युवती की 5 मई 2011 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह हुआ, लेकिन विवाह के तुरंत बाद पति और उसके परिवार के सदस्यों ने पत्नी के साथ क्रूरता करना शुरू कर दिया. पति ने विवाह के समय अपनी वास्तविक आयु भी छिपाई थी और झूठा बयान दिया था कि वह एक सरकारी कर्मचारी है. विवाह के बाद आपसी कलह से परेशान पत्नी अलग रहने लगी. इसके बाद पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत पारिवारिक न्यायालय जांजगीर-चांपा में आवेदन किया.

मामले में 26.09.2018 के आदेश के अनुसार पति के पक्ष में निर्णय दिया गया और पत्नी को उसके साथ रहने का निर्देश दिया गया. पत्नी ने भी एक याचिका दायर की थी, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया था, क्योंकि पारिवारिक न्यायालय में दोनों के बीच समझौता हो गया था. इसके बाद अपीलकर्ता पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय के समक्ष हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (बी) के तहत आवेदन दायर किया, जिसे खारिज कर दिया गया, जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की गई.

सुनवाई में अपीलकर्ताओं के वकील ने कहा कि विवादित निर्णय और डिक्री कानून और तथ्यों दोनों की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण है और इसे रद्द किया जाना चाहिए. सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि विवाह के समय पति ने अपनी उम्र 28 वर्ष बताया था जबकि उसकी वास्तविक उम्र 40 वर्ष रहा. वहीं पत्नी 18 वर्ष की थी. पति ने खुद को सरकारी नौकरी में भी बताया था. मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि, हम इस बात से संतुष्ट हैं कि यह विवाह पूरी तरह से टूट चुका है. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाह का पूरी तरह से टूट जाना तलाक का आधार नहीं है मगर एक ऐसा विवाह जो सभी के लिए ख़त्म हो चुका है न्यायालय के आदेश से उसके उद्देश्यों को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता.