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मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ क्रिकेट प्रीमियर लीग सीजन 2 के समापन समारोह में हुए शामिल

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ShivJun 15, 20252 min read

रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय आज यहां नवा रायपुर के…

थाना प्रभारी सहित पुलिसकर्मियों के हुए तबादले, देखिये किसे कहां भेजा गया

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ShivJun 15, 20251 min read

दुर्ग। जिले में प्रशासनिक कारणों से शनिवार को पुलिस अधीक्षक…

‘समर्थ -2025′ CA स्टूडेंट्स नेशनल कांफ्रेंस का सफल आयोजन सम्पन्न

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ShivJun 15, 20252 min read

रायपुर।  पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम, रायपुर हो रहे इस राष्ट्रीय…

डुंडा स्थित आवासीय कॉलोनी में रहवासियों द्वारा किया गया शराब दुकान का विरोध

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ShivJun 15, 20251 min read

रायपुर। डुंडा पाम मिडास के बाजू फ्रेंड्स क्लब कॉलोनी के…

ग्रामीणों से भरी पिकअप पलटी, दुर्घटना में 2 महिला 1 पुरूष की मौत, 12 से अधिक गंभीर रूप से घायल

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ShivJun 15, 20252 min read

कोंडागांव।   कोंडागांव जिला में एक पिकअप वाहन के पलटने से…

June 15, 2025

Apni Sarkaar

जो कहेंगे सच कहेंगे

अपहरण और हत्या के मामले में दोषियों की आजीवन कारावास की सजा बरकरार, हाईकोर्ट ने कहा- शव की बरामदगी अनिवार्य नहीं

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपहरण और हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए आरोपियों की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है. कोर्ट ने मामले में स्पष्ट टिप्पणी करते हुए कहा कि भले ही मृतक का शव बरामद नहीं हुआ हो, लेकिन साक्ष्यों की पूरी श्रृंखला अभियुक्तों की संलिप्तता की पुष्टि करती है. यदि हर मामले में शव की बरामदगी पर जोर दिया जाएगा तो आरोपी हत्या के बाद शव को नष्ट करने का हर संभव प्रयास करेगा और सजा से बच सकता है. चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की डिवीजन बेंच ने चतुर्थ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, दुर्ग द्वारा 24 फरवरी 2021 को दिए गए निर्णय को सही ठहराया है.

मृतक हरिप्रसाद देवांगन के पुत्र आनंद देवांगन ने 18 जनवरी 2019 को नेवई थाना में अपने पिता के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई. जांच के दौरान आरोपियों आकाश कोसरे और संजू वैष्णव की गिरफ्तारी हुई. पूछताछ में उन्होंने हरिप्रसाद का अपहरण कर उसकी हत्या करने और फिर खोरपा गांव के पास खेत में भूसे से उसका शव जलाने की बात स्वीकार की. अभियोजन पक्ष ने अपना पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित किया. आरोपियों के कथन के आधार पर घटनास्थल से मृतक से संबंधित वस्तुएं जैसे जली हुई हड्डियां, टिफिन बॉक्स, आभूषण और व्यक्तिगत सामा बरामद किए गए. इन अवशेषों की फॉरेंसिक और डीएनए जांच करवाई गई. लेकिन डीएनए प्रोफाइल स्पष्ट रूप से नहीं मिल सकी.

फॉरेंसिक विशेषज्ञ ने गवाही दी कि बरामद हड्डियां मानव की थीं और लगभग 60 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति की थीं, जो मृतक की उम्र के अनुकूल थीं. अभियोजन पक्ष ने 20 गवाहों की गवाही कराई, जिनमें जांच अधिकारी अमित कुमार बेरिया, फॉरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. स्निग्धा जैन और अनुपमा मेश्राम शामिल थे. अभियुक्तों के वकीलों ने तर्क दिया कि दोषसिद्धि प्रत्यक्ष साक्ष्य या चश्मदीद गवाहों के अभाव में टिकाऊ नहीं है, और मृतक की पहचान भी प्रमाणिक रूप से स्थापित नहीं हो सकी. उन्होंने यह भी कहा कि जब्ती की गई वस्तुएं सार्वजनिक स्थानों से प्राप्त हुईं, जहां किसी का भी पहुंचना संभव था, और इन वस्तुओं या अपराध में प्रयुक्त वाहन की विधिसम्मत पहचान नहीं कराई गई.

कोर्ट ने डीएनए की पुष्टि न होने के बावजूद यह पाया कि अभियोजन पक्ष अपहरण, डकैती और हत्या की घटनाओं की एक ऐसी सुसंगत श्रृंखला प्रस्तुत करने में सफल रहा, जिससे यह साबित होता है कि अभियुक्त ही इस अपराध में दोषी है इसलिए अपील खारिज कर दी गई और निचली अदालत द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा गया.