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संघ के पूर्व प्रचारक नंदकिशोर शुक्ल राज्य सरकार से नाराज, कहा- छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी के साथ हो रहा छल, नई शिक्षा नीति के विपरीत काम

रायपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में कई दशकों तक प्रचारक रहे नंदकिशोर शुक्ल भयंकर गुस्से में हैं. शुक्ल राज्य में नई शिक्षा नीति के विपरीत काम होने से सरकार से नाराज हो गए हैं. शुक्ल ने अपनी नाराजगी खुले तौर पर सोशल मीडिया में जाहिर कर दी है. वहीं उन्होंने सरकार की ओर से उचित कदम नहीं उठाए जाने पर आगामी दिनों में सड़क पर उतरकर बड़े आंदोलन करने की चेतावनी भी दे दी है.

दरअसल शुक्ल की नाराजगी छत्तीसगढ़ में दूभाषी फार्मूले में मातृभाषा की पढ़ाई कराए जाने पर है. उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में क्या लिखा है पढ़िए-

“बुनियादी सिक्छा मँ जउन परयोग देस मँ अउ कहूँ नइ होवय वो परयोग छत्तीसगढ़ मँ करे जात हे ! १ली-२री कक्छा के भासा-बिसय ला दूभासी–‘५०% छत्तीसगढ़ी अउ ५०% हिन्दी’– मिंझराभासा बिसय के रूप मँ पढ़ाय के परयोग करे गे हे ! अइसनहा घातक परयोग छत्तीसगढ़ मँ काबर ? काबरके ‘छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया नइ, सबसे घटिया’ हे, जउन ह अपन महतारी-भासा ला माधियम भासा के रूप मँ पढ़ना तो जाय देवा; ओला एक ठी अलगा भासा-बिसय के रूप मँ भी पढ़ना नइ चाहय, मिंझरेच्च-भासा के रूप मँ पढ़ना बरदास्त करत हे तेखरसेती ? एके ठी पोथी मँ भासा-बिसय के एके ठी पीरियड मँ दू-दू ठी भासा पढ़ाना छत्तीसगढ़िया पिलवा- बच्चामन के साथ मानसिक बरबरता नोहय त अउ काय ए ? देस मँ अउ कोनो राज्य के का, दुनियाभर के अउ कोनो देस के लइकामन अइसनहा दू-भासी माध्यम मँ अपन महतारीभासा ला पढ़त होहीं का ?”

शुक्ल का कहना है कि छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी के साथ साजिश के तहत काम हो रहा है. छत्तीसगढ़ीभाषियों के प्रभाव को कम करने, उन पर राज करते रहने की दृष्टि से छलपूर्वक काम हो रहा है. गैर छत्तीसगढ़ीभाषी सरकारी अधिकारी राज्य की मातृभाषाओं को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं. राज्य में इस छल-कपट की नीति से एक बड़े विद्रोह जन्म ले सकता है.

मुख्मंत्री को गुमराह करने की कोशिश कर रहे अधिकारी

उन्होंने यह भी कहा कि मातृभाषा को माध्यम भाषा बनाकर पहलीं से पांचवीं तक अनिवार्य रूप शिक्षा देने का निर्णय मोदी सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के तहत किया है. इस नीति को राज्य में मोदी की गारंटी भी कहा गया है. बावजूद इसके छत्तीसगढ़ में सरकार इस गारंटी को पूर्णरूपेण पालन करा पाने में अब तक नाकाम रही है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि एक भोले-भाले आदिवासी मुख्यमंत्री को गुमराह करने की कोशिश राज्य के अधिकारी और सरकारी सिस्टम की ओर से किया जा रहा है. यही वजह कि छत्तीसगढ़ में नई शिक्षा नीति के मूल उद्देश्यों को अभी तक लागू नहीं किया गया है.

30 वर्षों से छत्तीसगढ़ी भाषा में पढ़ाई-लिखाई के लिए संघर्ष कर रहे शुक्ल

शुक्ल ने यह भी कहा कि उन्होंने मातृभाषा के साथ हो रहे छल, नई शिक्षा नीति के प्रावधानों के उल्लंघन के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के साथ संघ प्रमुख मोहन भागवत तक अपनी बात विभिन्न माध्यमों से पहुँचाने का उपक्रम किया है. गौरतलब है कि नंदकिशोर शुक्ल छत्तीसगढ़ में बीते 30 वर्षों से छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रचार-प्रसार और पढ़ाई-लिखाई के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वे छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के संरक्षक हैं. उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर 2007 में छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा दिलाने और छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग बनवाने में अहम भूमिका निभाई है.