SCERT द्वारा पांच दिवसीय योग शिक्षा उन्मुखीकरण प्रशिक्षण कार्यक्रम का किया गया आयोजन
रायपुर। छात्रों को कक्षा के अनुरूप योगासनों का अभ्यास, साथ ही व्यक्तिगत स्वच्छता, परिवेशीय स्वच्छता, नियमितता, वाणी व्यवहार, राष्ट्र-प्रेम एवं अनुशासन आदि के मूल्यों से संस्कारित करने के कार्य में, खेलों के माध्यम से विद्यार्थियों के शारीरिक विकास के साथ संयम, खेलभावना, नेतृत्व और सामंजस्य आदि गुणों का विद्यार्थियों में विकास हो सके इस उद्देश्य को लेकर छत्तीसगढ़ शासन द्वारा SCERT, छ.ग. रायपुर के माध्यम से शासकीय संस्थाओं में कार्यरत शिक्षकों को योग शिक्षा का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। उसी क्रम में इस सत्र 2024-25 में शासकीय विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए DIET स्त्रोत पुरुषों को परिषद में पांच दिवसीय योग शिक्षा पर उन्मुखीकरण कार्यक्रम दिनांक 07/01/2025 से दिनांक 11/01/2025 तक आयोजित है। उक्त प्रशिक्षण में प्रत्येक डाइट से 05 योग शिक्षकों के अनुसार 19 डाइट्स से 95 योग शिक्षकों आमंत्रित किया गया था, जिसमें से 19 डाइट्स से 87 योग शिक्षक उक्त उन्मुखीकरण कार्यक्रम में भाग ले रहे है। उक्त प्रशिक्षित योग शिक्षको के द्वारा प्रत्येक डाइट के माध्यम से डाइट से सम्बंधित जिले के 55 शिक्षकों को योग शिक्षा में पाँच दिवसीय योग का प्रशिक्षण प्रदाय किया जावेगा। पांच दिवसीय योग शिक्षा उन्मुखीकरण कार्यक्रम राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद छत्तीसगढ़ ,रायपुर के संचालक, दिव्या उमेश मिश्रा(आई ए एस) के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में संकालित हो रहा है। परिषद के योग शिक्षा प्रकोष्ठ प्रभारी ज्ञानप्रकाश द्विवेदी, (सहायक प्राध्यापक, SCERT,CG,रायपुर) के समन्वय से में राज्य स्त्रोत शिक्षक डॉ छगन लाल सोनवानी रायपुर, छबी राम साहू रायपुर, तुकेन्द्र वर्मा तिल्दा, राजेश तिवारी नगरी, संजय वस्त्रकार दुर्गुकोंदल कांकेर, ज्योति वैद डाइट कांकेर के द्वारा योग गीत, योग का परिचय एवं महत्व, विद्यार्थी जीवन में खेलों का महत्व, अष्टांग योग का संक्षिप्त परिचय, षट्कर्म एवं प्राणायाम, योग-मुद्रा, योग-बंध, स्थूल व्यायाम एवं सूक्ष्म व्यायाम में विभेद, योग द्वारा विद्यार्थियों का व्यक्तित्व विकास एवं तनाव प्रबंधन, विद्यार्थियों के स्वास्थ के विकास में योग की भूमिका, सूर्य नमस्कार, नैतिक मूल्यपरक शिक्षा का विद्यार्थी-जीवन में महत्व, मद्यपान, तंबाकू और नशीले पदार्थों से बचाव, प्राथमिक उपचार, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन का महत्व, सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रकार, प्रातः कालीन अभ्यास सत्र में किये जाने वाले प्रमुख योगासन, प्राणायाम, योगमुद्रा, बंध तथा अन्य सूक्ष्म व्यायाम का प्रशिक्षण दिया जा रहा है,जिसका उद्देश्य है कि वर्तमान समय मे मनुष्य भौतिकता की दौड़ में यंत्रवत् हो गया है, उसका आध्यात्मिक विकास अवरुद्ध-सा हो गया है। अर्थ-प्राप्ति के भागमभाग में संवेदनशीलता प्रायः लुप्त हो गई है। शाश्वत जीवन-मूल्य जीवन से दूर हो चुके हैं। अतएवं भौतिकता और आध्यात्मिकता का सामंजस्य आवश्यक हो गया है और इसके लिए योग ही एक मात्र व सुगम पथ है, जिसके माध्यम से इस उद्देश्य की प्राप्ति की जा सकती है। योग प्राचीन भारतीय परंपरा एवं संस्कृति की अमूल्य देन है। योग अभ्यास शरीर एवं मन, विचार एवं कर्म, आत्म संयम एवं पूर्णता मानव एवं प्रकृति के मध्य सामंजस्य स्थापित करता है। सृष्टि, एवं पालन विनाश की शक्ति की शाश्वतता की भावना एक स्थितप्रज्ञ ही कर सकती है और यह स्थितप्रज्ञाता चित्त-वृत्तियों का निरोध की अवस्था में ही हो सकती है। पौराणिक कथाओं ने भी लिखा है- “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” अर्थात चित्त की वृत्तियों का निरोध योग से ही संभव है। पंचमहाभूत “क्षिति जल पावक गगन समीरा” से ही मनुष्य के शरीर एवं मन की संरचना हुई है। मन की चेतना शक्ति ब्रह्म के सन्निकट होती है। व्यक्ति को उसी चेतना शक्ति के आधार पर जीवन-शक्ति प्राप्त होती है। व्यक्ति का आचार-विचार, उस की मानसिकता सभी कुछ उत्ती चेतना-शक्ति की वृद्धि पर निर्भर करता है। इसी से व्यक्ति परम आनंद का अनुभव करता है।
योग एक विज्ञान के साथ-साथ एक ऐसी जीवनशैली एवं पद्धति है, जिस से मनुष्य जीवनपर्यंत निरोगी एवं स्वस्थ रहते हुए, सुख और आनंद की अनुभूति के साथ मानव जीवन के उच्चतम शिखर को प्राप्त कर सकता है। योग ‘सत्यं शिवं सुंदरम् की प्रखर अभिव्यक्ति है। अतः ईश्वर के प्रति पूर्ण आस्था, विश्वास एवं आत्मसर्मपण का नाम ही योग है।ऐसी स्थिति में विद्यार्थियों को संस्कारित करने के लिए नैतिक मूल्य, ‘योग’ की उपादेयता एवं अनिवार्यता को समझते हुए छत्तीसगढ़ शासन ने प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक एवं माध्यमिक स्तर तक की कक्षाओं के लिए नैतिक मूल्य एवं योग शिक्षा को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया है। विद्यालयों में के द्वारा विद्यार्थियों के मन, बुद्धि व चित्त को पुष्ट करने के साथ-साथ शारीरिक एवं नैतिक विकास पर भी बल दिया जा सकेगा। जो विद्यालय में उपयोगी सिद्ध होगा।