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ShivFeb 24, 20253 min read

जशपुर।  छत्तीसगढ़ में टमाटर की खेती करने वाले किसान खून…

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सक्ती/दुर्ग। छत्तीसगढ़ के सक्ति और दुर्ग जिले में रविवार को…

हार्डवेयर दुकान में लगी भीषण आग, 50 से 60 लाख रुपये का सामान जलकर खाक

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सरगुजा। अंबिकापुर में बीती रात एक हार्डवेयर और पेंट की…

February 24, 2025

Apni Sarkaar

जो कहेंगे सच कहेंगे

शराब घोटाले में ईडी का दावा, अनवर ढेबर ने पूर्व IAS अरुणपति त्रिपाठी के साथ मिलकर रची थी साजिश

रायपुर। शराब घोटाला केस में उत्तरप्रदेश के मेरठ जेल से रायपुर लाने के बाद 14 अगस्त तक ईडी की रिमांड पर चल रहे होटल कारोबारी अनवर ढेबर और पूर्व आबकारी अफसर अरूणपति त्रिपाठी से पूछताछ जारी है। इस बीच ईडी ने दावा किया है कि अनवर ढेबर पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में काफी ताकतवर व्यक्ति और आबकारी मंत्री का वह ”’पावर”’ रखता था। तत्कालीन आईएएस रहे अनिल टुटेजा के साथ मिलकर वह शराब सिंडिकेट चलाता था। दोनों ने मिलकर पूरे घोटाले की साजिश रची। ईडी ने प्रेस नोट जारी कर यह बातें कही हैं।

त्रिपाठी की घोटाले में अहम भूमिका

ईडी के मुताबिक जांच में यह साफ हुआ है कि अरुणपति त्रिपाठी ने सरकारी शराब की दुकानों (जिसे पार्ट-बी कहा जाता है) के जरिए बेहिसाब शराब बिक्री की योजना को लागू करने में अहम भूमिका निभाई।

उसने ही 15 जिले जहां अधिक शराब बिक्री होती थी और राजस्व आता था, उन जिलों के आबकारी अधिकारियों के साथ बैठक कर अवैध शराब बेचने के निर्देश दिए थे।

त्रिपाठी ने ही विधु गुप्ता के साथ डुप्लीकेट होलोग्राम की व्यवस्था की थी।जांच में पता चला है कि शराब की बिक्री से आने वाले पैसों में एक निश्चित राशि त्रिपाठी को दी जाती थी।

2019 से 2022 तक चला भ्रष्टाचार

शराब घोटाले में भ्रष्टाचार 2019 से 2022 के बीच चला है। इसमें कई तरीकों से भ्रष्टाचार किया गया था। पार्ट ए में छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कार्पोरेशन लिमिटेड़ (शराब की खरीद और बिक्री के लिए राज्य का निकाय) की ओर से शराब की प्रत्येक पेटी के लिए डिस्टलरी से रिश्वत ली गई थी।त्रिपाठी को अपने पसंद के डिस्टिलर की शराब को परमिट करना था,जो रिश्वत-कमीशन को लेकर सिंडिकेट का हिस्सा हो गए थे।

पार्ट बी में सरकारी शराब दुकान के जरिए बेहिसाब कच्ची और देशी अवैध शराब की बिक्री की गई।यह बिक्री नकली होलोग्राम से हुई थी, जिससे राज्य के खजाने में एक भी रुपए नहीं पहुंचा और बिक्री की सारी राशि सिंडिकेट ने जेब में डाल ली।

पार्ट सी कार्टेल बनाने और बाजार में निश्चित हिस्सेदारी रखने की अनुमति देने के लिए डिस्टिलर्स से रिश्वत ली गई और एफएल 10 ए लाइसेंस धारक जो विदेशी शराब उपलब्ध कराते थे उनसे भी कमीशन लिया गया। इस घोटाले के कारण राज्य के खजाने को भारी नुकसान हुआ।शराब सिंडिकेट के जेबों में 2100 करोड़ रुपए से अधिक गए।