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विकसित भारत के सपने को साकार करने में युवाओं की है महत्वपूर्ण भूमिका: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

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ShivJan 21, 20253 min read

रायपुर।     उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज राजधानी रायपुर के…

छत्तीसगढ़ स्टेट फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष के खिलाफ हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस, जानिए क्या है मामला

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ShivJan 21, 20251 min read

रायपुर।   छत्तीसगढ़ स्टेट फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष अरुण मिश्रा के…

अमर शहीद हेमू कालाणी की प्रतिमा पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने किया माल्यार्पण

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ShivJan 21, 20253 min read

भोपाल।   मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मंगलवार को उज्जैन की…

January 22, 2025

Apni Sarkaar

जो कहेंगे सच कहेंगे

डी.डी. नगर मंदिर में महावीर ज्ञान विद्यासंघ पैनल ने किया पूजन अभिषेक

बड़ा मंदिर में अक्षय तृतीय पर्व पर मूलनायक आदिनाथ जी का स्वर्ण कलशों से अभिषेक, ईक्षु रस का वितरण

रायपुर।    आज दिनांक 9 मई सुबह 7 बजे डी.डी. नगर के मूलनायक श्री वासुपुज्य भगवान के दर्शन एवं आशीर्वाद हेतु आज बड़े मंदिर जी के संजय नायक ,राजेश रज्जन, श्रेयश जैन, शैलेंद्र जैन , प्रणीत जैन, मीडिया प्रवीण जैन आदि पहुंच कर प्रतिदिन होने वाली अभिषेक शांतिधारा पूजन में भाग लिया। मंदिर समिति के सदस्यों ने सभी का स्वागत किया। कल दिनांक 10 अप्रैल शुक्रवार को अक्षय तृतीय पर्व के अवसर पर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर, रायपुर राजधानी के बड़े मंदिर के बड़े बाबा देवाधिदेव मूलनायक 1008 श्री आदिनाथ भगवान का पारणा महोत्सव अक्षय तृतीया पर्व को बड़े धूमधाम से मनाया जायेगा। बड़ा मंदिर के अध्यक्ष संजय नायक जैन ने बताया की मुख्य कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रातः 7.30 बजे से मूलनायक 1008 श्री आदिनाथ भगवान की चल प्रतिमा का स्वर्ण कलशों से अभिषेक शांतिधारा कर पूजन किया जाएगा। तत्पश्चात सार्वजनिक रूप से गन्ने के रस का वितरण 9 बजे से 10 बजे तक किया जायेगा।

दिगंबर जैन धर्म के अनुसार अक्षय तृतीय का महत्व

भारत महान संस्कृति वाला देश है. यहां हर पर्व-त्योहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. हर त्योहार के लिए प्रत्येक धर्म के लोगों की अपनी-अपनी मान्यताएं होती हैं. हिंदू धर्म में जहां अकती या अक्षय तृतीया के दिन को बहुत शुभ माना जाता है, तो वहीं जैन धर्म में भी इस दिन का महत्व कुछ कम नहीं है। जैन धर्म में अक्षय तृतीया पर दान का विशेष महत्व बताया गया है. जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, भगवान आदिनाथ ने सबसे पहले समाज में दान के महत्व को समझाया था और दान की शुरुआत की थी. भगवान आदिनाथ राज-पाठ का त्याग करके वन में तपस्या करने निकल गए. उन्होंने वहां 6 महीने तक लगातार ध्यान किया. 6 महीने बाद जब उन्होंने सोचा कि इस समाज को दान के बारे में समझाना चाहिए तो वे ध्यान से उठकर आहार मुद्रा धारण करके नगर की ओर निकल पड़े.नगर में तीर्थंकर मुनि को देखकर सारे लोग खुशी से झूम उठे और तीर्थंकर मुनि को अपनी सारी चीजें देने के लिए आगे आ गए. लेकिन वे नहीं जानते थे कि मुनिराज दुनिया की मोह-माया को त्याग चुके हैं. ऐसा करते-करते उन्हें 6 महीने हो गए और उन्हें आहार की प्रप्ति कहीं नहीं हुई. और इस तरह लगभग एक साल से ज्यादा का समय बीत गया.फिर एक दिन वे हस्तिनापुर के नाम से प्रचलित शहर चले गए, जो राजा सोम और राजा श्रेयांस का राज्य था. राजा श्रेयांस बहुत ज्ञानी राजा थे और उन्हें आहार विधि का भी ज्ञान था. अदि मुनिराज को देखकर उन्होंने आहार दान की प्रक्रिया शुरू कर दी और सबसे पहले मुनिराज को इक्षुरस यानी कि गन्ने के रस से आहार कराया. और इसी तरह राजा श्रेयांस और राजा सोम के घर सबसे पहले तीर्थंकर मुनिराज के आहार हुए.

जैन धर्म में अक्षय तृतीया के दिन लोग आहार दान, ज्ञान दान, औषाधि दान या फिर मंदिरों में बहुत दान करते हैं. बता दें कि जैन धर्म की मान्यता के हिसाब से भगवान आदिनाथ ने इस दुनिया को असि-मसि-कृषि के बारे में बताया था. इसे आसान भाषा में समझें तो असि यानि तलवार चलाना, मसि यानि स्याही से लिखना, कृषि यानी खेती करना होता है. भगवान आदिनाथ ने ही लोगों को इन विद्याओं के बारे में समझाया और लोगों को जीवन यापन के लिए इन्हें सीखने का उपदेश दिया. कहते हैं कि भगवान आदिनाथ ने ही सबसे पहले अपनी बेटियों को पढ़ाकर जीवन में शिक्षा का महत्व बताया था.