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June 18, 2025

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छिंदारी डेम बना भ्रष्टाचार का जलाशय, 44 लाख के पूरे भुगतान के बाद भी काम अधूरे… मिशन संडे की जांच में खुली पोल

खैरागढ़। छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ में ईको-पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर एक बार फिर भारी भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है. विधायक यशोदा नीलांबर वर्मा के निर्देशन में संचालित ‘मिशन संडे’ टीम ने रविवार को छिंदारी गांव स्थित रानी रश्मि देवी सिंह जलाशय का निरीक्षण किया. इस जलाशय को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए वन विभाग को 41 लाख रुपये की स्वीकृति मिली थी, लेकिन यहां के हालात कुछ और ही कहानी बयां करते हैं.

निरीक्षण के दौरान टीम ने पाया कि अधिकांश निर्माण कार्य या तो अधूरे हैं या बेहद घटिया गुणवत्ता के हैं. किचन शेड, मचान, कुर्सियां और बैठने की अन्य व्यवस्थाएं बेहद साधारण और कमजोर सामग्री, जैसे- बांस और सस्ती लकड़ियों से बनाई गई है. यह स्पष्ट दिखा कि निर्माण कार्यों में न केवल लापरवाही बरती गई है बल्कि शासकीय धन का खुला दुरुपयोग भी हुआ है. टीम को यह भी जानकारी मिली कि इन अधूरे कार्यों का भुगतान वन विभाग द्वारा पहले ही पूरा कर दिया गया है.

वहीं स्थानीय ग्रामीणों ने भी टीम के समक्ष अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि विभागीय अधिकारियों ने सरकारी पैसे का खुलकर दुरुपयोग किया है. विकास के नाम पर केवल दिखावा किया गया है. ग्रामीणों ने आरोप लगाए कि विभाग ने बिना जमीनी काम किए, कागजों में ही पूरे प्रोजेक्ट को पूर्ण दिखा दिया.

जानिए किन कार्यों के लिए मिली थी 41 लाख की स्वीकृति और क्या काम हुए:

प्रस्तावित कार्यवर्तमान में स्थिति
स्थल समतलीकरणअधूरा
किचन शेड निर्माणखराब गुणवत्ता से निर्माण, बांस और हल्की लकड़ी से खानापूर्ति
बोर खननस्पष्ट नहीं
टेंट-मचानअधूरे और खराब गुणवत्ता से निर्मित
सोलर लाइटिंगअनुपस्थित
बोटिंग व्यवस्थानहीं के बराबर
सौंदर्यीकरणनहीं के बराबर
कुर्सियां और बैठने की अन्य व्यवस्थाएंसस्ती लकड़ी और बांस से बनाई गई, स्थायित्व नहीं

बता दें, कुल 41 लाख की राशि व्यय दर्शाई गई है, कार्य भी कागजों में पूरे दर्शा दिए गए हैं. लेकिन निरीक्षण में अधिकांश कार्य अधूरे या बहुत ही निम्न गुणवत्ता के पाए गए. मिशन संडे टीम के अनुसार वास्तविक लागत 10–12 लाख से अधिक नहीं होनी चाहिए थी.

विधायक यशोदा वर्मा ने निरीक्षण के बाद बेहद तीखी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने साफ कहा कि सरकार की योजनाएं जनहित के लिए बनाई जाती हैं, लेकिन जिले में बैठे कुछ अधिकारी और कर्मचारी पूरी तरह भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि जब 41 लाख रुपये खर्च किए जा चुके हैं तो काम अधूरे क्यों हैं? उन्होंने इस मामले को विधानसभा में उठाने और वन मंत्री से सोशल ऑडिट की मांग करने की बात कही.

मिशन संडे के संयोजक मनराखन देवांगन ने भी परियोजना की लागत और गुणवत्ता पर बड़ा सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि अगर ईमानदारी से आकलन किया जाए, तो इस काम में 10 से 12 लाख रुपये से अधिक की लागत नहीं आनी चाहिए थी, लेकिन विभाग ने 14 लाख रुपये से ज्यादा का खर्च पहले ही दिखा दिया है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि फर्जी कोटेशन के जरिए एक नए एनजीओ को लाखों रुपये का लाभ पहुंचाया गया है, जिसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.

यह मामला केवल एक परियोजना की लापरवाही नहीं है, बल्कि यह बताता है कि कैसे सरकारी योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर गंभीरता से नहीं लिया जाता. अगर समय रहते ऐसे मामलों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो जनहित की योजनाएं कागजों में ही दम तोड़ती रहेंगी और जनता का भरोसा तंत्र से उठता जाएगा.