हिंदी पत्रकारिता में चुनौतियां और संभावनाएं: शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन

जगदलपुर। हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर शुक्रवार को शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग द्वारा बस्तर में हिंदी पत्रकारिता चुनौतियां एवं संभावनाएं विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस अवसर पर बस्तर के विभिन्न मीडिया संस्थानों के संपादक, रिपोर्टर, कैमरामैन, इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया से जुड़े मीडियाकर्मी, शिक्षाविद एवं पत्रकारिता के छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित रहे.
हिंदी पत्रकारिता दिवस का महत्व
गौरतलब है कि हिंदी पत्रकारिता दिवस हर वर्ष 30 मई को मनाया जाता है। यह दिन भारत में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत की स्मृति में मनाया जाता है। सन् 1826 में इसी दिन उदन्त मार्तण्ड नामक पहले हिंदी समाचार पत्र का प्रकाशन कलकत्ता से शुरू हुआ था। इस ऐतिहासिक पहल के साथ हिंदी पत्रकारिता का उद्भव हुआ, जिसने आगे चलकर भारतीय समाज में सामाजिक चेतना, स्वतंत्रता संग्राम और लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज का दिन हिंदी पत्रकारिता के मूल्यों, संघर्षों और उसकी सामाजिक भूमिका को पुनः स्मरण करने का अवसर है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मनोज कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि बस्तर जैसे जनजातीय और भौगोलिक दृष्टि से जटिल क्षेत्र में पत्रकारिता करना अत्यंत साहसिक कार्य है। यहां के पत्रकार जिन विषम परिस्थितियों में काम करते हैं, वह उनके समर्पण और सेवा भावना को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि पत्रकार बहुआयामी व्यक्तित्व होता है, जो समाज की नब्ज पहचानकर उसे शब्द देता है, परिवर्तन की आवाज बनता है और नागरिकों को जागरूक करने में अहम भूमिका निभाता है.
मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित वरिष्ठ संपादक दिलशाद नियाजी ने कहा कि पत्रकारिता एक मिशन है, न कि केवल एक पेशा। बस्तर जैसे संवेदनशील और दूरस्थ क्षेत्रों में पत्रकारों को कई सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक चुनौतियों से गुजरना पड़ता है। उन्होंने कहा कि एक पत्रकार को केवल समाचार संकलन नहीं, बल्कि प्रकाशन, वितरण, और जनविश्वास को बनाए रखने की भी जिम्मेदारी निभानी होती है.
बस्तर जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार मनीष गुप्ता ने कहा कि हमें सुंदर बस्तर के निर्माण के लिए सचेत, शोधपरक और संवेदनशील पत्रकारिता को बढ़ावा देना होगा। उन्होंने जोर दिया कि पत्रकार को अपने पूरे करियर में अध्ययनशील बने रहना चाहिए, क्योंकि बिना ज्ञान के पत्रकार किसी विषय पर न्याय नहीं कर सकता। उन्होंने विश्वविद्यालय प्रबंधन से आग्रह किया कि पत्रकारिता में पीजी कोर्स और शोध पीठ की स्थापना की जाए, ताकि क्षेत्रीय और ग्रामीण पत्रकारों को भी अकादमिक रूप से प्रशिक्षित किया जा सके.
वरिष्ठ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकार नरेश मिश्रा ने कहा कि पत्रकारों को चुनौतियों से डरने की बजाय उन्हें स्वीकार कर आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि निराश न हों, बल्कि अवसर मिलने पर कुछ नया और बेहतर करने का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता पर सवाल उठाना लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन मीडिया को लेकर नकारात्मक धारणाएं बनाना अनुचित है.

कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रज्ञा गुप्ता और आशुतोष तिवारी ने किया। कुलसचिव डॉ. राजेश लालवानी ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए विश्वविद्यालय के प्रयासों की जानकारी दी। इस अवसर पर विभागाध्यक्ष डॉ. संजय डोंगरे, जनसंपर्क अधिकारी डॉ. विनोद कुमार सोनी, सत्यवान साहू, इंदु बेक, विमलेश साहू समेत विभिन्न विभागों के संकाय सदस्य एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। यह संगोष्ठी न केवल पत्रकारिता के छात्रों के लिए ज्ञानवर्धक रही, बल्कि बस्तर क्षेत्र में हिंदी पत्रकारिता की चुनौतियों और संभावनाओं को गहराई से समझने का अवसर भी प्रदान कर गई.