प्रतिष्ठित वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय अधिवक्ता बने भुवन ऋभु

रायपुर। प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता व अधिवक्ता भुवन ऋभु को वर्ल्ड लॉ कांग्रेस में वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन ने प्रतिष्ठित ‘मेडल ऑफ ऑनर’ पुरस्कार से सम्मानित किया. ऋभु यह अंतरराष्ट्रीय सम्मान पाने वाले पहले भारतीय अधिवक्ता हैं. इस वर्ल्ड लॉ कांग्रेस में 70 देशों के 1500 से ज्यादा विधिक क्षेत्र के दिग्गजों व 300 वक्ताओं ने हिस्सा लिया, जहां दुनिया की इस सबसे पुरानी ज्यूरिस्ट एसोसिएशन ने कानूनी हस्तक्षेपों और जमीनी लामबंदियों के जरिए बच्चों और उनके अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में दो दशक से जारी संघर्षों और उपलब्धियों के लिए भुवन ऋभु को सम्मानित किया. यह कांग्रेस डोमिनिकन रिपब्लिक में 4 से 6 मई के बीच संपन्न हुई.
वर्ष 1963 में स्थापित वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन दुनिया के विधिवेत्ताओं की सबसे पुरानी संस्था है जिसने न्याय के शासन की स्थापना में अपने योगदान के लिए विंस्टन चर्चिल, नेल्सन मंडेला, रूथ बेडर गिन्सबर्ग, स्पेन के राजा फेलिप षष्टम्, रेने कैसिन और कैरी कैनेडी जैसी ऐतिहासिक हस्तियों को सम्मानित किया है. भुवन ऋभु के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में दायर 60 से ज्यादा जनहित याचिकाओं के नतीजे में कई ऐतिहासिक फैसले आए हैं जिसने देश में बाल अधिकार व बच्चों की सुरक्षा का पूरा परिदृश्य बदल दिया है. वे वैश्विक विस्तार की ओर अग्रसर नागरिक समाज संगठनों के दुनिया के सबसे बड़े कानूनी हस्तक्षेप नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) के संस्थापक हैं.
पुरस्कार स्वीकार करते हुए भुवन ऋभु ने कहा, “न्याय की लड़ाई में बच्चों को कभी भी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए. कानून उनकी ढाल और न्याय उनका अधिकार होना चाहिए.” डोमिनिकन रिपब्लिक के श्रम मंत्री एडी ओलिवारेज ऑर्तेगा और वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष जेवियर क्रेमाडेस ने उन्हें ‘मेडल ऑफ ऑनर’ प्रदान किया. इस अवसर पर डोमिनिकन रिपब्लिक की महिला मंत्री मायरा जिमेनेज भी उपस्थित थीं.
कानूनी हस्तक्षपों और पैरोकारियों से भुवन ऋभु भारत की बाल संरक्षण व्यवस्था में बदलाव के एक प्रमुख सूत्रधार रहे हैं. उन्होंने बाल विवाह, बच्चों की ट्रैफिकिंग, बाल श्रम और बाल यौन शोषण के विरुद्ध कानूनी मुहिमों और जमीनी कार्रवाइयों का नेतृत्व किया है. उनके सतत प्रयासों के नतीजे में भारत में बाल विवाह के खात्मे की दिशा में प्रणालीगत सुधार देश को 2030 तक देश से इस कुप्रथा के अंत के लिए निर्णायक बिंदु की ओर ले जा रहे हैं. वे 2030 तक दुनिया से बाल विवाह के खात्मे के लिए वैश्विक आंदोलन में भी अग्रणी किरदार हैं.
ऋभु के संघर्षों और उपलब्धियों की मुक्तकंठ से सराहना करते हुए डब्ल्यूजेए के अध्यक्ष जेवियर क्रेमाडेस ने कहा, “भुवन ऋभु का दृढ़ता से मानना है कि न्याय लोकतंत्र का सबसे मजबूत खंभा है और उन्होंने पूरा जीवन देश में व पूरे विश्व में बच्चों और यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए समर्पित कर दिया है. उनके प्रयासों ने लाखों-महिलाओं और बच्चों को बचाने के साथ ही एक ऐसा कानूनी ढांचा निर्मित किया है जिससे आने वाली पीढ़ियां भी सुरक्षित रहेंगी. यह पुरस्कार कानूनी हस्तक्षेपों के जरिए बच्चों के लिए एक निरापद और बेहतर दुनिया बनाने के उनके प्रयासों का सम्मान है.”
एक राष्ट्रीय अभियान का वैश्विक असर
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के संस्थापक भुवन ऋभु की जनहित याचिकाओं और कानूनी हस्तक्षपों का असर ये है कि आज देश में बच्चों के खिलाफ अपराध की रोकथाम और अभियोजन के तरीकों में आमूल बदलाव आया है. ऋभु की सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों में दायर 60 से भी अधिक जनहित याचिकाओं पर ऐतिहासिक फैसले आए हैं. वर्ष 2011 में उनकी जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ट्रैफिकिंग को संयुक्त राष्ट्र के प्रोटोकाल के अनुरूप परिभाषित किया. इसी तरह 2013 में गुमशुदा बच्चों के मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला आया.
भुवन ऋभु ने ऑनलाइन और असली जीवन, दोनों में बाल यौन शोषण के विरुद्ध कानूनी और नीतिगत सुधारों को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है. इसमें एक याचिका पर बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार संबंधी सामग्री (सी-सीम) को डाउनलोड करने, देखने को अपराध घोषित करने का फैसला भी शामिल है. उन्होंने बाल बलात्कार के मामलों में अपराधियों की सजा सुनिश्चित करने के लिए कानूनी बदलावों और देश से बाल विवाह की समाप्ति के लिए कानूनी रूपरेखा तैयार करने में भी अहम भूमिका निभाई है.
ऋभु की किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन : टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज” में बाल विवाह के खात्मे के लिए पिकेट रणनीति के रूप में एक समग्र खाका पेश किया जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में जारी दिशानिर्देशों में एक व्यापक मार्गदर्शिका के तौर पर मान्यता दी.