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April 12, 2025

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कृषि भारत के अर्थव्यवस्था की रीढ़, किसान देश के भाग्य विधाता: सांसद बृजमोहन अग्रवाल

नई दिल्ली/रायपुर।  शुक्रवार को कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत अनुदान की मांगों पर चर्चा के दौरान रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने लोकसभा में भाषण दिया। इस दौरान उन्होंने पूर्वोत्तर राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ को भी कृषि क्षेत्र में विशेष पैकेज देने की मांग की।

सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने अपने भाषण की शुरुवात शायरी से की
“गांव के गलियों में तब उम्मीदों के दीप जलते हैं। जब किसान सरकार मिलकर चलते हैं।”

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि कल्याण मंत्री को धन्यवाद देते हुए कहा कि, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार किसानों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है। जिससे किसानों के जीवन में नया सबेरा आया है।

किसानों की योजनाएं सिर्फ कागजों में नहीं यथार्थ के धरातल पर उतर रही है और उसका परिणाम है कि देश के किसान समृद्ध हो रहे है, खुशहाल हो रहे हैं और कृषि के प्रति लोगों का झुकाव लगातार बढ़ रहा है। देश के हर गरीब परिवार के लिए प्रधानमंत्री खाद्यान्न योजना के तहत् अनाज व्यवस्था मोदी सरकार ने की है।

सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने किसानों की बेहतरी और कृषि क्षेत्र के समुचित विकास के लिए छत्तीसगढ़ को पूर्वोत्तर राज्यों की तर्ज पर विशेष पैकेज देने की मांग की। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में 30% आदिवासी और लगभग 12% अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं, जिनके हितों को ध्यान में रखते हुए यह अनुदान अत्यंत आवश्यक है।

श्री अग्रवाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है, जहां लगभग 76% आबादी कृषि पर निर्भर है। राज्य में 40.11 लाख कृषक परिवार हैं, जिनमें से 82% कृषक लघु एवं सीमांत श्रेणी के हैं। इन किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वे नवीन कृषि तकनीकों और आवश्यक संसाधनों को अपनाने में कठिनाई का सामना कर रहे हैं। यदि छत्तीसगढ़ को भी पूर्वोत्तर राज्यों की तरह केंद्र प्रवर्तित योजनाओं में विशेष अनुदान प्रावधान मिले, तो इससे प्रदेश के किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और कृषि विकास को बढ़ावा मिलेगा।

राज्य की प्रमुख कृषि मांगें

1. ड्रिप इरिगेशन एवं स्प्रिंकलर पर 90% अनुदान:

श्री अग्रवाल ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (Per Drop More Crop) के तहत वर्तमान में किसानों को मिलने वाले अनुदान को बढ़ाने की मांग की। वर्तमान में लघु एवं सीमांत किसानों को 55% और अन्य किसानों को 45% अनुदान दिया जाता है। चूंकि छत्तीसगढ़ में 83% किसान लघु एवं सीमांत श्रेणी के हैं और वे आर्थिक रूप से कमजोर हैं, इसलिए राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में पूर्वोत्तर राज्यों की तरह 90% अनुदान स्वीकृत किया जाए।

2. नवगठित जिलों में कृषि विज्ञान केंद्रों की स्थापना:

राज्य के नवगठित छह जिलों—गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, सक्ती, सारंगढ़-बिलाईगढ़, खैरागढ़, मानपुर-मोहला, और मनेन्द्रगढ़ में कृषि विज्ञान केंद्रों की स्थापना की आवश्यकता है, जिससे किसानों को नवीन कृषि तकनीकों की जानकारी त्वरित रूप से मिल सके।

3. माइनर मिलेट्स (कोदो-कुटकी एवं रागी) के प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना:

छत्तीसगढ़ में माइनर मिलेट्स की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन इनका प्रसंस्करण करने के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी है। इन फसलों का उत्पादन मुख्य रूप से आदिवासी किसान करते हैं। यदि इन क्षेत्रों में सहकारी या निजी प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित की जाएं, तो किसानों को अधिक लाभ मिलेगा और इन फसलों का राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय निर्यात भी बढ़ेगा।

4. महिला किसानों को तकनीकी रूप से दक्ष बनाने की योजना:

प्रदेश में अधिकांश कृषि कार्य महिलाओं द्वारा किया जाता है। यदि उन्हें तकनीकी रूप से दक्ष बनाने के लिए पृथक योजनाएं चलाई जाएं, तो उनका कृषि में योगदान और भी बढ़ सकता है।

5. दूरस्थ क्षेत्रों में भंडारण सुविधाओं का विकास:

उन्होंने कहा कि, छत्तीसगढ़ में खाद्यान्न भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं है। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए भंडारण की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। केंद्र सरकार से अनुरोध है कि राज्य में वेयरहाउस निर्माण के लिए सहायता प्रदान करे, जिससे फसलों को सुरक्षित रखा जा सके और किसानों को आर्थिक नुकसान से बचाया जा सके।

6. पराली जलाने की रोकथाम हेतु अनुदान:

पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की तरह छत्तीसगढ़ में भी पराली जलाने की समस्या बढ़ रही है। इस समस्या के समाधान हेतु राज्य में क्रॉप रेजिड्यू मैनेजमेंट यंत्रों को अनुदान पर उपलब्ध कराने की योजना लागू की जाए।

7. बीज किस्मों की बाध्यता समाप्त करने की मांग:

वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं में केवल 5 से 10 वर्ष पुरानी विकसित प्रजातियों पर ही लाभ दिया जाता है। जबकि कई ऐसी पारंपरिक किस्में हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अधिक उत्पादन देती हैं। अतः राज्य की अनुशंसा पर विशेष किस्मों के लिए 5 से 10 वर्ष की बाध्यता समाप्त की जाए।

8. जैविक खेती को बढ़ावा एवं प्रमाणीकरण सुविधा:

जैविक खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ रहा है, लेकिन प्रमाणीकरण की प्रक्रिया कठिन होने के कारण वे पूरी तरह इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। प्रमाणीकरण प्रक्रिया को सरल बनाया जाए, जिससे जैविक उत्पादों को उचित मूल्य मिल सके।

9. नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल – ऑयल पाम योजना में सुधार की मांग

बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बहुल राज्य है, जहां 40% किसान लघु एवं सीमांत श्रेणी के हैं। ऑयल पाम की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर अनुमानित लागत ₹3.41 लाख आती है, जबकि भारत सरकार की ओर से मात्र ₹1.21 लाख (35%) अनुदान दिया जाता है। किसानों को बाकी ₹2.20 लाख का निवेश स्वयं करना पड़ता है, जो उनके लिए कठिन है।

श्री अग्रवाल ने सुझाव दिया कि वन अधिकार पट्टा धारक किसानों की तरह अन्य छोटे और सीमांत किसानों को भी 90% अनुदान दिया जाए, जिससे वे ऑयल पाम की खेती को अपनाने के लिए प्रेरित हों। इसके अतिरिक्त, ऑयल पाम की खेती के लिए फेसिंग (बाड़) की सुविधा बहुत आवश्यक है, लेकिन वर्तमान योजनाओं में इसके लिए कोई अनुदान प्रावधान नहीं है। इसलिए, ऑयल पाम योजना में फेसिंग हेतु अनुदान का प्रावधान भी जोड़ा जाए।

उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति किसानों को राष्ट्रीय बागवानी मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल – ऑयल पाम, राष्ट्रीय पुनर्गठित बांस मिशन, और सब-मिशन ऑन एग्रोफॉरेस्ट्री योजना के तहत 90% तक अनुदान प्रदान किया जाए, ताकि वे आधुनिक तकनीकों को अपनाकर अपनी आय में वृद्धि कर सकें।

10. जल संरक्षण एवं सिंचाई व्यवस्था में सुधार की मांग

प्रदेश में पर्याप्त वर्षा होने के बावजूद जल संरक्षण के अभाव में पानी व्यर्थ बह जाता है। वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए अधिक से अधिक चेकडेम, सिंचाई तालाब आदि का निर्माण किया जाए, जिससे न केवल सिंचित क्षेत्र में वृद्धि होगी, बल्कि भूजल स्तर में भी सुधार होगा।

बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि यदि छत्तीसगढ़ को पूर्वोत्तर राज्यों की तरह विशेष अनुदान दिया जाए, तो यह राज्य के छोटे किसानों की आर्थिक स्थिति को सशक्त बनाएगा और कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा। उन्होंने केंद्र सरकार से अनुरोध किया कि किसानों की इन मांगों को शीघ्रता से पूरा किया जाए, जिससे प्रदेश के कृषि क्षेत्र को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया जा सके।