Special Story

नगर पालिका चुनाव : भाजपा महिला प्रत्याशी का नामांकन निरस्त, एसडीएम ने बताई ये बड़ी वजह

नगर पालिका चुनाव : भाजपा महिला प्रत्याशी का नामांकन निरस्त, एसडीएम ने बताई ये बड़ी वजह

ShivJan 27, 20252 min read

धरसींवा। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि के एक दिन पहले…

CGMSC गड़बड़ी: रायपुर-दुर्ग समेत हरियाणा के दर्जनभर से अधिक ठिकानों पर ACB-EOW ने मारा छापा, कई अहम दस्तावेज किए बरामद

CGMSC गड़बड़ी: रायपुर-दुर्ग समेत हरियाणा के दर्जनभर से अधिक ठिकानों पर ACB-EOW ने मारा छापा, कई अहम दस्तावेज किए बरामद

ShivJan 27, 20252 min read

रायपुर। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज़ कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CGMSC) में हुई गड़बड़ी के…

अंतिम व्यक्ति तक शासन की योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए काम करती है भाजपा- डिप्टी सीएम विजय शर्मा

अंतिम व्यक्ति तक शासन की योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए काम करती है भाजपा- डिप्टी सीएम विजय शर्मा

ShivJan 27, 20253 min read

रायपुर।   हम दीनदयाल के अंत्योदय के सिद्धांत “अंतिम व्यक्ति तक…

January 27, 2025

Apni Sarkaar

जो कहेंगे सच कहेंगे

गांव से मोहल्ले को जोड़ने के लिए 2 करोड़ लागत से बनाया गया था पुल, अब ग्रामीण कर रहे खलिहान के रूप में उपयोग

गरियाबंद।      गरियाबंद जिले के देवभोग क्षेत्र के गोहरापदर में एक उच्च स्तरीय पुल का निर्माण पिछले कुछ सालों से चर्चा का विषय बना हुआ है. ओडिसा सीमा से लगे इस गांव में 75 मीटर लंबे और 2 करोड़ की लागत से बने पुल का निर्माण 2015 में पीडब्ल्यूडी के सेतु निगम शाखा ने किया था. हालांकि, यह पुल अब अपनी असली उद्देश्य के बजाय फसल सुखाने और मिंजाई के लिए इस्तेमाल हो रहा है.

दरअसल, यह पुल पंचायत मुख्यालय को दूसरे मोहल्ले से जोड़ता है और आगे जाकर ओडिशा के कोतमेर गांव से जुड़ता है. यह क्षेत्र एक ग्रामीण इलाका होने के कारण प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (PMGSY) के मापदंडों पर खरा नहीं उतरता था. बावजूद इसके, 2015 में यहां उच्च स्तरीय पुल का निर्माण किया गया. पुल पर वाहनों की आवाजाही कम होने के कारण अब किसान इस पुल पर धान और मक्का की फसलें सुखाने के लिए उपयोग कर रहे हैं. इतना ही नहीं, फसलों की रखवाली के लिए पुल के ऊपर किसान अस्थायी झोपड़ियां भी बना चुके हैं.

ग्रामीण इलाके में स्थित इस पुल से वाहनों का आवागमन काफी कम होता है. हालांकि, धान सप्लाई सीजन के दौरान ओडिशा से हर दिन 10 से 12 पिकअप और ट्रैक्टर पुल से गुजरते हैं. इस पुल की मुख्य समस्या यह है कि इसका इस्तेमाल केवल कृषि कार्यों के लिए हो रहा है, जबकि इसे यातायात के लिए बनवाया गया था.

तूआस नाले की चौड़ाई और पुल निर्माण

जिस नाले पर यह पुल बनाया गया है, उसकी चौड़ाई 15 मीटर से भी कम थी, लेकिन सर्वे में इसका डूबान क्षेत्र 30 मीटर से ज्यादा पाया गया था. इसके बाद 2015 में इस पुल के निर्माण की मंजूरी दी गई थी. 2014 में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, धुपकोट जलाशय का उलट भी किया गया था, जिससे नाले में पानी का दबाव कम हुआ और बाढ़ का खतरा भी टल गया. इस पुल के बनने के बाद से अब तक किसी प्रकार की बाढ़ की समस्या उत्पन्न नहीं हुई है.

अधिकारियों ने मामले से पल्ला झाड़ा 

जब इस मामले में पीडब्ल्यूडी और सेतु निगम के अधिकारियों से संपर्क किया गया, तो उन्होंने इस कार्य को “पुराना मामला” बताकर जवाब देने से इंकार कर दिया. अधिकारियों ने इसे एक पुरानी परियोजना मानते हुए मामले से पल्ला झाड़ लिया.

नकली पुल पर किया गया फिजूलखर्ची का आरोप 

मैनपुर ब्लॉक के ग्रामीणों ने गोहरापदर पुल की तुलना में शोभा क्षेत्र में पांच अन्य नदियों और नालों पर पुल निर्माण की मांग की है. जिला पंचायत उपाध्यक्ष संजय नेताम ने कहा कि शासन ने गैर-जरूरी स्थानों पर करोड़ों रुपए खर्च किए, जबकि जरूरतमंद इलाकों की अनदेखी की गई. उन्होंने इस पूरी स्थिति को “फिजूलखर्ची” करार देते हुए कहा कि अगर इस पुल का सही इस्तेमाल हुआ होता तो यह ग्रामीण क्षेत्र की यातायात व्यवस्था में सुधार करता, लेकिन अब इसे कृषि कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

जरूरतमंद क्षेत्रों में पुल निर्माण की मांग तेज

बता दें, ग्रामीणों ने लंबे समय से पुल निर्माण के लिए संघर्ष किया है, और अब उनकी यह मांग और भी जोर पकड़ रही है कि जरूरतमंद क्षेत्रों में प्राथमिकता के साथ पुलों का निर्माण किया जाए. इस मामले पर प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में प्रतिक्रिया आने की संभावना है, क्योंकि ग्रामीण इस मुद्दे को लेकर और अधिक सक्रिय हो गए हैं.