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ट्रांसफार्मर में डीओ चढ़ाने का काम कर रहा था ठेका श्रमिक, 33 केवी की सप्लाई अचानक हो गई चालू, गंभीर रूप से घायल

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ShivJun 2, 20252 min read

गरियाबंद। जिले के फिंगेश्वर नगर में ट्रांसफार्मर पर डीओ (ड्रॉपआउट फ्यूज) चढ़ाने के दौरान…

डॉक्टर की दबंगई और अस्पताल की बदहाली : ड्यूटी छोड़ निजी क्लिनिक पहुंचे डॉक्टर, पत्रकार से की अभद्रता

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ShivJun 1, 20252 min read

खैरागढ़। खैरागढ़ जिला मुख्यालय स्थित सिविल अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं…

हमारी सरकार बस्तर में शांति और विकास के लिए प्रतिबद्ध: मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय

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ShivJun 1, 20254 min read

रायपुर।  छत्तीसगढ़ ने बौद्ध धर्म से जुड़ी सुंदर स्मृतियों को…

मुख्यमंत्री ने भोंगापाल में बांस नौका विहार केंद्र का किया शुभारंभ

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ShivJun 1, 20251 min read

रायपुर।   मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कोंडागांव जिले के भोंगापाल…

June 2, 2025

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अंबेडकर अस्पताल की अव्यवस्था पर हाई कोर्ट में जवाब नहीं दे पाई सरकार, महाधिवक्ता ने मांगा और समय…

बिलासपुर। राजधानी रायपुर के अंबेडकर अस्पताल में फैली अव्यवस्थाओं और मरीजों को हो रही परेशानी को लेकर सामने आई मीडिया रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए हाई कोर्ट ने सचिव से जबाव मांगा था, लेकिन सरकार अपना जवाब नहीं दे पाई. महाधिवक्ता ने और समय की मांग की. जिसे चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की बेंच स्वीकार कर लिया.

दरअसल, 27 मई को चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की डिवीजन में सुनवाई हुई थी, जिसमें मीडिया रिपोर्ट में प्रकाश में लाए गए मामले पर संज्ञान लेकर लापरवाही पर नाराजगी जाहिर की थी. रिपोर्ट में बताया गया था कि प्रदेश के सबसे सरकारी अस्पताल में टूटी हुई हड्डियों, दुर्घटनाओं में फ्रैक्चर, गंभीर चोटों और कैंसर के रोगियों को सर्जरी के लिए एक या दो दिन नहीं बल्कि 15 से 20 दिन तक इंतजार करना पड़ता है. कई बार मरीजों को ऑपरेशन थियेटर में ले जाने के बाद वापस लाया जाता है. इससे गंभीर रोगियों की जान का जोखिम बढ़ गया है.

मरीजों के साथ मौजूद परिजनों का कहना है कि डॉक्टर और स्टाफ उन्हें बिना बताए ऑपरेशन थियेटर से वापस भेज देते हैं. ऐसा एक-दो बार नहीं, बल्कि कई बार होता है. अगर वे इसका विरोध करते हैं, तो उन्हें निजी अस्पताल में जाकर इलाज कराने को कहा जाता है. मजबूरी में लोग इलाज होने तक मरीजों के साथ अस्पताल में ही रहते हैं.

अंबेडकर अस्पताल में छोटे-बड़े ऑपरेशन थियेटर मिलाकर कुल 29 ऑपरेशन थियेटर हैं. सभी में सर्जरी के लिए सिर्फ 1-2 डॉक्टर हैं. अस्पताल में रोजाना दुर्घटना, कैंसर और गंभीर बीमारियों से पीड़ित दर्जनों मरीज आते हैं. कई मरीज ऐसे हैं जो एक महीने से ऑपरेशन का इंतजार कर रहे हैं. आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के पास अपनी बारी का इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता. कई बार मरीजों के परिजन अपना आपा खो देते हैं. डॉक्टरों और प्रबंधन के साथ तीखी नोकझोंक होती है. मारपीट तक की नौबत आ जाती है.

हाइ कोर्ट ने उपरोक्त मामले के मद्देनजर सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, छत्तीसगढ़ से व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने कहा था. लेकिन समय पर अपेक्षित हलफनामा संबंधित सचिव द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जा सका. महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत ने कहा हलफनामा तैयार किए जाने की बात कहते हुए इसे प्रस्तुत करने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया. महाधिवक्ता के अनुरोध को स्वीकार करते हुए बैंच ने इस मामले को 10 जून को सूचीबद्ध किया है.